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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: 'बुलडोजर न्याय' पर रोक

 



Supreme Court's Big Judgement on Bulldozer Justice


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बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बी.आर. गवई ने अपनी 95 पन्नों की ऐतिहासिक निर्णय में "बुलडोजर न्याय" के तहत संपत्तियों की ध्वस्तीकरण पर देशव्यापी दिशा-निर्देश स्थापित किए। न्यायमूर्ति गवई ने प्रसिद्ध हिंदी कवि प्रदीप के एक प्रभावशाली दोहे का हवाला दिया, जिसमें कहा गया:

"अपना घर हो, अपना आंगन हो, इस ख्वाब में हर कोई जीता है; इंसान के दिल की ये चाहत है कि एक घर का सपना कभी न छूटे।"

निर्णय के शुरुआत में न्यायालय ने इस दोहे का उद्धरण दिया, जो यह बताता है कि हर व्यक्ति और परिवार का सबसे बुनियादी सपना एक घर और सुरक्षित आंगन है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि घर, एक व्यक्ति की स्थिरता और सुरक्षा का प्रतीक है।

इस फैसले में यह सवाल उठाया गया था कि क्या कार्यपालिका को किसी आरोपी के खिलाफ कथित अपराधों के आधार पर उनके घर को हटाने का अधिकार होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 21 के तहत आवास के अधिकार को एक आवश्यक अधिकार माना, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है।

मुख्य दिशा-निर्देशों में शामिल हैं:

  1. शो कारण नोटिस: कोई भी संपत्ति तोड़ने से पहले संबंधित अधिकारियों को शो कारण नोटिस जारी करना होगा और प्रभावित पक्षों को 15 दिन का समय दिया जाएगा अपनी बात रखने के लिए।
  2. कानूनी प्रक्रिया का पालन: अदालत ने यह स्पष्ट किया कि संपत्ति तोड़ने की प्रक्रिया में पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए, न कि इसे मनमाने तरीके से लागू किया जाए।

न्यायालय ने 'बुलडोजर न्याय' की कड़ी आलोचना की, जिसमें बिना किसी उचित न्यायिक प्रक्रिया के संपत्तियों को नष्ट किया जाता था। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि कार्यपालिका को न्यायिक कार्यों को नहीं संभालना चाहिए, और न ही किसी व्यक्ति को दोषी घोषित कर उसकी संपत्ति तोड़ी जा सकती है। उन्होंने इसे असंवैधानिक करार दिया, यह कहते हुए कि कार्यपालिका न्यायपालिका की बुनियादी जिम्मेदारियों का उल्लंघन नहीं कर सकती।

यह निर्णय नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है और सुनिश्चित करता है कि किसी के घर को सिर्फ आरोपों या सजा के आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता। यह सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण कदम है जो संविधान द्वारा प्रदान किए गए नागरिक अधिकारों का सम्मान करता है।