पाकिस्तानी तस्कर अब ड्रोन का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं?
पाकिस्तानी तस्करी और आतंकवादी संगठन अब भारतीय सीमा पर ड्रोन के माध्यम से अवैध सामान, जैसे कि मादक पदार्थ, हथियार और गोलाबारूद भेज रहे हैं। पहले, ये तस्कर भूमि मार्गों का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब ड्रोन के माध्यम से सटीकता से और तेज़ी से अपनी वस्तुएं भेजने लगे हैं। खासकर चीनी निर्मित ड्रोन का उपयोग ड्रग्स, हथियार और विस्फोटक सामग्री की तस्करी के लिए किया जा रहा है, जिससे सीमा पर सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता पैदा हो गई है।
सुरक्षा के पारंपरिक उपकरण नहीं कर पाते इन ड्रोन्स को ट्रैक !
पारंपरिक सुरक्षा उपाय जैसे कि सीसीटीवी कैमरे और बॉर्डर पर पेट्रोलिंग ड्रोन की बढ़ती संख्या के सामने अपर्याप्त साबित हो रहे हैं। ड्रोन बहुत ही हल्के होते हैं, और उन्हें पकड़ पाना या ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है, खासकर जब वे उच्च ऊचाई पर उड़ रहे होते हैं। इसके अलावा, इन ड्रोन का आकार इतना छोटा होता है कि सामान्य कैमरे और रडार द्वारा इन्हें पकड़ पाना एक बड़ी चुनौती बन चुका है।
ड्रोन के द्वारा सुरक्षा को लेकर नई चिंताएँ
ड्रोन की बढ़ती तादाद के साथ, कई नए खतरे भी सामने आ रहे हैं, जो हमारी सुरक्षा के लिए गंभीर हो सकते हैं:
ड्रोन का हथियारकरण (Weaponization of Drones)
छोटे व्यावसायिक ड्रोन को विस्फोटक या अन्य हथियारों से लैस किया जा सकता है। इससे ड्रोन को न केवल तस्करी के लिए, बल्कि हमलों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे पर हमले (Disruption of Critical Infrastructure)
ड्रोन का इस्तेमाल साइबर हमले, इलेक्ट्रॉनिक जामिंग या भौतिक हमलों के लिए किया जा सकता है। इससे देश की महत्वपूर्ण और संवेदनशील बुनियादी ढांचों को नुकसान हो सकता है, जैसे कि पावर ग्रिड, संचार नेटवर्क और सैन्य प्रतिष्ठान।गोपनीयता का उल्लंघन (Privacy Concerns)
ड्रोन को उच्च गुणवत्ता वाले कैमरों से लैस किया जा सकता है, जिससे वे आम नागरिकों की गोपनीयता को खतरे में डाल सकते हैं। यह नागरिकों की व्यक्तिगत सुरक्षा और गोपनीयता के लिए गंभीर चिंता का विषय है।ड्रोन झुंड (Drone Swarms)
ड्रोन स्वार्म का मतलब है जब एक साथ कई ड्रोन एकजुट होकर काम करते हैं। यह स्थिति सुरक्षा बलों के लिए और भी कठिन हो सकती है, क्योंकि इतने सारे ड्रोन को एक साथ नियंत्रित करना और उन्हें ट्रैक करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो सकता है। ड्रोन स्वार्म्स रक्षा प्रणालियों को ओवरलोड कर सकते हैं और उन्हें नष्ट कर सकते हैं।
ड्रोन-रोधी तकनीकों का विकास
इस बढ़ती समस्या से निपटने के लिए विभिन्न प्रकार की ड्रोन-रोधी तकनीकों का विकास किया जा रहा है:
रेडियो फ्रीक्वेंसी सेंसर (Radio Frequency Sensors)
ये सेंसर ड्रोन के रेडियो सिग्नल्स को पहचानने में मदद करते हैं। इसके माध्यम से बड़ी क्षेत्रों में ड्रोन के होने का पता लगाया जा सकता है।हाई-पावर माइक्रोवेव (HPM) सिस्टम्स
ये प्रणाली एक साथ बहुत सारे ड्रोन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को नष्ट करने की क्षमता रखती है। HPM सिस्टम्स बड़े क्षेत्रों में 'एरिया डिनायल' (Area Denial) ऑपरेशंस के लिए आदर्श होते हैं, जहां ड्रोन के सिग्नल को जाम किया जा सकता है।इंटीग्रेटेड ड्रोन डिटेक्शन और इंटरडिक्शन सिस्टम्स (IDD&IS)
यह तकनीकी प्रणाली भारतीय सीमा पर चीन के साथ लगी सीमा पर विशेष रूप से तैनात की गई है। यह सिस्टम ड्रोन को पकड़ने और नष्ट करने के लिए 'सॉफ्ट किल' तकनीक (जैसे जामिंग) और 'हार्ड किल' तकनीक (जैसे लेज़र्स) का संयोजन करती है। इससे ड्रोन को ट्रैक और नष्ट किया जा सकता है, जिससे सीमा पर तस्करी और हमलों को रोका जा सकता है।
निष्कर्ष
ड्रोन के माध्यम से होने वाली तस्करी और सुरक्षा खतरों का सामना करना आजकल की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बन गया है। हालांकि BSF और अन्य सुरक्षा एजेंसियों ने नई तकनीकों और उपायों के जरिए इसे चुनौती दी है, लेकिन ड्रोन के खतरे से पूरी तरह से निपटना अभी भी एक लंबी और कठिन प्रक्रिया है। हमें इन नई तकनीकों को लागू करने और सुरक्षा प्रणालियों को मजबूत करने की दिशा में निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि हम अपने देश की सुरक्षा को और अधिक मजबूती से सुनिश्चित कर सकें।
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